The Definitive Guide to naat lyrics
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naat lyrics in urdu
میرا کون ہے؟ سوائے تم ہی کو؟ اے! پیارے نبی (صلى الله عليه وسلم)
तू है इब्न-ए-मौला-'अली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से क़दम गर्दन-ए-औलिया पर है तेरा तू है रब का ऐसा वली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तुम जो बनाओ, बात बनेगी दोनों जहाँ में लाज रहेगी लजपाल ! करम अब कर दो मँगतों की झोली भर दो भर दो कासा सब का पंज-तनी ख़ैर से मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से कहा हम ने '
मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से डालो नज़र-ए-करम, सरकार ! अपने मँगतों पर इक बार हम ने आस है लगाई बड़ी देर से मेरे चाँद ! मैं सदक़े, आजा इधर भी चमक उठे दिल की गली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरे रब ने मालिक किया तेरे जद को तेरे घर से दुनिया पली, ग़ौस-ए-आ'ज़म ! मीराँ ! वलियों के इमाम ! दे दो पंज-तन के नाम हम ने झोली है फैलाई बड़ी देर से तेरा रुत्बा आ'ला न क्यूँ हो, कि मौला !
मैं पानी का प्यासा नहीं हूँ मेरा सर कटाने को दिल चाहता है वो शहर-ए-मोहब्बत जहाँ मुस्तफ़ा हैं वहीं घर बनाने को दिल चाहता है जो देखा है
या हुसैन इब्न-ए-'अली ! या हुसैन इब्न-ए-'अली !
कहाँ जाए, आक़ा ! ये मँगता भला मदीना बुला लीजिए वो रमज़ान तेरा, वो दालान तेरा वो अज्वा, वो ज़मज़म, ये मेहमान तेरा तेरे दर पे इफ़्तार का वो मज़ा मदीना बुला लीजिए जहाँ के सभी ज़र्रे शम्स-ओ-क़मर हैं जहाँ पे अबू-बक्र-ओ-'उस्माँ, 'उमर हैं जहाँ जल्वा-फ़रमा हैं हम्ज़ा चचा मदीना बुला लीजिए हुआ है जहाँ से जहाँ ये मुनव्वर जहाँ आए जिब्रील क़ुरआन ले कर मुझे देखना है वो ग़ार-ए-हिरा मदीना बुला लीजिए जिसे सब हैं कहते नक़ी ख़ाँ का बेटा वो अहमद रज़ा है बरेली में लेटा उसी आ'ला
नबी का लब पर जो ज़िक्र है बे-मिसाल आया, कमाल आया !
या हुसैन इब्न-ए-'अली ! या हुसैन इब्न-ए-'अली !
“five behtareen English naatein” ke barey mein faraham kardi hui malumaat ki behtareen shahadat yehi hai ke naatein hamari deeni warasat ka aham hissa hain.
रुत्बा ये विलायत में क्या ग़ौस ने पाया है अल्लाह ने वलियों का सरदार बनाया है है दस्त-ए-'अली सर पर, हसनैन का साया है मेरे ग़ौस की ठोकर ने मुर्दों को जिलाया है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! लाखों ने उसी दर से तक़दीर बना ली है बग़दादी सँवरिया की हर बात निराली है डूबी हुई कश्ती भी दरिया से निकाली है ये नाम अदब से लो, ये नाम जलाली है अल-मदद, पीरान-ए-पीर ! ग़ौस-उल-आ'ज़म दस्त-गीर ! अल-मदद, पीरान-ए-पीर !
मुस्त़फ़ा, जान-ए-रह़मत पे लाखों सलाम शम्-ए-बज़्म-ए-हिदायत पे लाखों सलाम मेहर-ए-चर्ख़-ए-नुबुव्वत पे रोशन दुरूद गुल-ए-बाग़-ए-रिसालत पे लाखों सलाम शहर-ए-यार-ए-इरम, ताजदार-ए-ह़रम नौ-बहार-ए-शफ़ाअ़त पे लाखों सलाम शब-ए-असरा के दूल्हा पे दाइम दुरूद नौशा-ए-बज़्म-ए-जन्नत पे लाखों सलाम हम ग़रीबों के आक़ा पे बे-ह़द दुरूद हम फ़क़ीरों की सर्वत पे लाखों सलाम दूर-ओ-नज़दीक के सुनने वाले वो कान कान-ए-ला’ल-ए-करामत पे लाखों सलाम जिस के माथे शफ़ाअ'त का सेहरा रहा उस जबीन-ए-सआ'दत पे लाखों सलाम जिन के सज्दे को मेह़राब-ए-का’बा झुकी उन भवों की लत़ाफ़त पे लाखों सलाम जिस त़रफ़ उठ गई, दम में दम आ गया उस निगाह-ए-इ़नायत पे लाखों सलाम नीची आंखों की शर्म-ओ-ह़या पर दुरूद ऊँची बीनी की रिफ़्अ'त पे लाखों सलाम पतली पतली गुल-ए-क़ुद्स की पत्तियाँ उन लबों की नज़ाकत पे लाखों सलाम वो दहन जिस की हर बात वह़ी-ए-ख़ुदा चश्मा-ए इ़ल्म-ओ-हिकमत पे लाखों सलाम वो ज़बाँ जिस को सब कुन की कुंजी कहें उस की नाफ़िज़ ह़ुकूमत पे लाखों सलाम जिस की तस्कीं से रोते हुए हँस पड़ें उस तबस्सुम की अ़ादत पे लाखों सलाम हाथ जिस सम्त उठ्
मेरे दिल ! तू ही बता क्या तेरी हालत होगी !
जज़्बे से मनाते हैं ये सदियों से मुसलमाँ
लक़ब जो सिद्दीक़ तेरा ठहरा, निराला सब से है तेरा पहरा